प्यार की जीत
एक शांत सरोवर में दो हंसों का जोड़ा अक्सर आया जाया करता था। कभी वह जोड़ा आपस में सर से सर मिलाकर घंटों उसी मुद्रा में बैठा रहा करता तो कभी फड़फड़ाते हुए अपने पँखों को जोड़ सरोवर के पानी में फुदका करता । नीले-नीले सरोवर के जल में श्वेत रंग का वह खुबसूरत जोड़ा कनक और चिन्मय के लिए जैसे उन दोनों के ही प्रेम का प्रतीक था। अक्सर ही दोपहर बाद से लेकर पूरी शाम कनक और चिन्मय उसी सरोवर के किनारे, उन दो हंसों के जोड़ें को देखते हुए, एक दूसरे के साथ बिताया करते थे। चिन्मय, कनक के हाथों की भरी-भरी चूड़ियों की खनक में खोया रहता तो कनक कभी गहरी, कभी अनकही चिन्मय की बातों में। चिन्मय और कनक दोनों एक ही काॅलेज से थे। काॅलेज में वह एक दूसरे को देखते तो थे पर यूँ मिला नहीं करते थे। काॅलेज के अन्तिम दिन चिन्मय ने कनक के सामने अपने प्यार का इज़हार किया था। कनक भी जैसे इसी पल का इंतज़ार कर रही थी। तब से आज तक उन दोनों के प्रेम संबंध को दो वर्ष हो चुके थे। न कनक ही कभी चिन्मय के परिवार से मिली और न चिन