गुम है किसी के प्यार में....

             “वो वहाँ देखो” — पीयूष ने उर्मिला को आसमान के एक हिस्से की ओर अपनी उँगली से इशारा करते हुए कहा।

“ कहाँ……. मुझे तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा” — उर्मिला ध्यान से देखते हुए बोली।
             नीला चटक आसमान, चमक लिए अलसाया सूरज, उस पर सफेद बादलों की छोटी-बड़ी हज़ार टुकड़ियाँ, आगे पीछे होते हुए बस एक दिशा की ओर भागे जा रही थी। लेकिन थी सब एक साथ – एक दूसरे के आसपास। जैसे अस्तित्व अलग होते हुए भी सब किसी एक ही बन्धन से जुड़ी हुई हो।
           भरी सर्दी की उस सुनहरी धूप में, घास पर सीधे सट कर लेटे हुए पीयूष और उर्मिला आसमान में उन्हीं बादलों की टुकड़ियों में ताँक-झाँकी कर रहे थे।
            पीयूष ने इन्हीं बादलों को चित्रों का रूप दे अपना और उर्मिला का एक प्यारा सा घर, उस घर के भीतर इधर-उधर फुदकते दो नन्हें पाँव, और उन पाँव के निशानों के आसपास अपना पूरा संसार देख लिया था।
            उन्हीं बादलों में अनेक तरह के चित्र उर्मिला भी देख रही थी। लेकिन वह पूरी तरह से यत्न कर रही थी वैसे ही चित्रों को देखने का जो जैसा उस समय पीयूष देख रहा था।
             अठखेलियां करती पीयूष की मुस्कान, उर्मिला की स्वप्निल मुस्कान में, इस ख्वाब भरे पल में, छुपी प्यार की गहराई को साफ पहचान रही थी। 
            
                                                      रजनी अरोड़ा 
                                                         (स्वरचित) 
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